हिंदी ग़ज़ल - बलजीत सिंह बेनाम
जब से इस जग का है उदभव
मानव से लड़ता है मानव
जीवित मुर्दे में क्या अंतर
इक शव को ढ़ोता दूजा शव
पापों के तुम ही संहारक
फिर धरती पर आओ राघव
तुम बिन नीरस मेरा जीवन
फ़ीके फ़ीके सारे वैभव
ख़ुशियों ने गर छोड़ा आँचल
दुःख में हरदम छेड़ो उत्सव
103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी
ज़िला हिसार(हरियाणा)
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